बुधवार, 18 जून 2014

हरिशंकर परसाई का व्यंग्य - अश्लील पुस्तकें

हरिशंकर परसाई/ Harishankar Parsai
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शहर में ऐसा शोर था कि अश्‍लील साहित्‍य का बहुत प्रचार हो रहा है। अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्‍लील पुस्‍तकें बिक रही हैं।
दस-बारह उत्‍साही समाज-सुधारक युवकों ने टोली बनाई और तय किया कि जहाँ भी मिलेगा हम ऐसे साहित्‍य को छीन लेंगे और उसकी सार्वजनिक होली जलाएँगे।
उन्‍होंने एक दुकान पर छापा मारकर बीच-पच्‍चीस अश्‍लील पुस्‍तकें हाथों में कीं। हरके के पास दो या तीन किताबें थीं। मुखिया ने कहा - आज तो देर हो गई। कल शाम को अखबार में सूचना देकर परसों किसी सार्वजनिक स्‍थान में इन्‍हें जलाएँगे। प्रचार करने से दूसरे लोगों पर भी असर पड़ेगा। कल शाम को सब मेरे घर पर मिलो। पुस्‍तकें में इकट्ठी अभी घर नहीं ले जा सकता। बीस-पच्‍चीस हैं। पिताजी और चाचाजी हैं। देख लेंगे तो आफत हो जाएगी। ये दो-तीन किताबें तुम लोग छिपाकर घर ले जाओ। कल शाम को ले आना।
दूसरे दिन शाम को सब मिले पर किताबें कोई नहीं लाया था। मुखिया ने कहा - किताबें दो तो मैं इस बोरे में छिपाकर रख दूँ। फिर कल जलाने की जगह बोरा ले चलेंगे।
किताब कोई लाया नहीं था।
एक ने कहा - कल नहीं, परसों जलाना। पढ़ तो लें।
दूसरे ने कहा - अभी हम पढ़ रहे हैं। किताबों को दो-तीन बाद जला देना। अब तो किताबें जब्‍त ही कर लीं।
उस दिन जलाने का कार्यक्रम नहीं बन सका। तीसरे दिन फिर किताबें लेकर मिलने का तय हुआ।
तीसरे दिन भी कोई किताबें नहीं लाया।
एक ने कहा - अरे यार, फादर के हाथ किताबें पड़ गईं। वे पढ़ रहे हैं।
दसरे ने कहा - अंकिल पढ़ लें, तब ले आऊँगा।
तीसरे ने कहा - भाभी उठाकर ले गई। बोली की दो-तीन दिनों में पढ़कर वापस कर दूँगी।
चौथे ने कहा - अरे, पड़ोस की चाची मेरी गैरहाजिर में उठा ले गईं। पढ़ लें तो दो-तीन दिन में जला देंगे।
अश्‍लील पुस्‍तकें कभी नहीं जलाई गईं। वे अब अधिक व्‍यवस्थित ढंग से पढ़ी जा रही हैं। 

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प्रभाकर माचवे का व्यंग्य - एक कुत्ते की डायरी

प्रभाकर माचवे/ Prabhakar Machwe
 प्रभाकर माचवे , prabhakar machwe

मेरा नाम 'टाइगर' है, गो शक्‍ल-सूरत और रंग-रूप में मेरा किसी भी शेर या 'सिंह' से कोई साम्‍य नहीं। मैं दानवीर लाला अमुक-अमुक का प्रिय सेवक हूँ; यद्यपि वे मुझे प्रेम से कभी-कभी थपथपाते हुए अपना मित्र और प्रियतम भी कह देते हैं। मतलब यह है कि लालाजी का मुझ पर पुत्रवत प्रेम है। नीचे मैं अपने एक दिन के कार्यक्रम का ब्‍यौरा उपस्थित करता हूँ -
6 बजे सवेरे - घर की महरी बहुत बदमाश हो गई है। मेरी पूँछ पर पैर रखकर चली गई। अंधी हो गई क्‍या? और ऊपर से कहती है - अँधेरा था। किसी दिन काट खाऊँगा। गुर्र-गुर्र... अच्‍छा-चंगा हड्डीदार सपना देख रहा था और यह महरी आ गई - इसने मेरे सपने के स्‍वर्ण-संसार पर पानी फेर दिया। ... फिर सो गया।
7 बजे - कोई कम्‍बख्‍त आ ही गया। नवागन्‍तुक दिखाई देता है। बहुत भूँका - पर नहीं माना। जरूर परिचित होगा। जाने दो - अपने बाबा का क्‍या जाता है?
8 बजे - नाश्‍ता-पानी। आज ब्रेकफास्‍ट की चाय पर बहुत गर्मागर्म बहस हो रही है! मालिक कह रहे हैं कि इन मजदूरों ने आजकल जहाँ देखो वहाँ सिर उठा रखा है। कुचलना होगा इन्‍हें! मालिक के मित्र बतला रहे थे कि हड़तालों के मारे तबाही मची हुई है। ऐसा कहते हुए उन्‍होंने अपनी नई 'सुपरफाइन' धोती से चश्‍मे की काँच पोंछ कर साफ की थी।
10 बजे - एक नए ढंग के जानवर से मुलाकात हो गई। यह 'फट् फट् फट्' आवाज बहुत करता है, नथुनों से धुआँ उगलता मालिक चाहता है तब रुकता है, चाहता है तब सरपट दौड़ता है। मैंने भरसक उसकी नकल में भूँकने और दौड़ने की कोशिश की - मगर यह किसी विदेश से आया हुआ प्राणी जान पड़ता है। जाने दो, अपने को विदेशियों से क्या पड़ी है?
11 बजे - भोजन। इस संबंध में इतना ही कहना पर्याप्‍त होगा कि अच्‍छे-अच्‍छे तनखावाले बाबुओं को जो नसीब न होगा, ऐसा उम्‍दा पकवान हमें मिल जाता है। सब भगवान की लीला है। जब वह खाता हूँ तो भूल जाता हूँ कि मेरे गले में कोई पट्टा भी है या मुझे भी कभी मालिक ठोकर मारता है।
12 बजे से 3 बजे तक - विश्रांति।
3 बजे - सहसा किसी का स्‍वर। निश्‍चय ही वह मालिक की बड़ी लड़की का मुलाकाती, भूरे-भूरे बालोंवाला तरुण है! वह मखमल की पैंट पहनता है, पहले मैंने उसे किसी चितकबरी बिल्‍ली का बदन ही समझा
5 बजे - बाहर फिर घूमने के लिए चला। मालकिन मेमसाहिबा खास कपड़े पहने, ऊँची एड़ी के जूते, रंगीन साड़ी वगैरह के साथ थीं। मेरी भी चेन खास ढंग की थी। यह तभी पहनाई जाती है जब मालकिन किसी उत्‍सव-विशेष या बाइस्‍कोप वगैरह में शामिल होती हैं।
6 से 8.30 बजे तक - एक सफेद पर्दे पर हिलती-बोलती तस्‍वीरें देखीं। अरे, तो यह आदमी जो अपने आपको बहुत सभ्‍य समझता है सो कुछ नहीं है। जैसे हम लोगों में प्रेमातुरता होती है, वैसे ही इनके चलचित्रों की नायक-नायिकाएँ दिखाती हैं। अच्‍छा हुआ मैंने यह दृश्‍य देख लिया। मेरा स्‍वप्‍न भंग हो गया। मानव जाति को मैं बड़ा आदर्श समझता था - परंतु वैसी कोई विशेष बात नहीं।
9 बजे - सोया। क्‍योंकि फिर सवेरे जागना है, वही पूँछ हिलाना है - तब डबलरोटी का टुकड़ा शायद मिले; और ज्‍यादा खुशामद करने पर दूध भी मिल सकता है!

Short version of एक कुत्ते की डायरी  
(Courtesy :  www.hindisatire.com)

 प्रभाकर माचवे , prabhakar machwe

महंगाई के लिए मानसून को जिम्मेदार क्या ठहराया, बिफर पड़े इंद्र देव

जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

देवलोक / नई दिल्ली
देवलोक में अपने अफसरों के बीच नाराज इंद्र। सौजन्य : लाइफ ओके
बारिश के देवता इंद्र ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर वित्त मंत्री अरुण जेटली के उस बयान पर गहरी निराशा जताई है जिसमें उन्होंने कहा था कि कमजोर मानसून के कारण देश में महंगाई बढ़ने की आशंका है।
इंद्र ने अपने पत्र, जिसकी प्रति हमारे पास है, में लिखा है कि धरती पर सदियों से यह एक बहुत ही गलत परंपरा पड़ गई है कि किसी भी काम के लिए देवलोक में बैठे देवताओं को दोषी ठहरा दो। पिछले कुछ सालों से खासकर बारिश बरसाने से संबंधित मेरे कामकाज पर जो टिप्पणियां की गई हैं, वह काफी खेदजनक हैं। उन्होंने पूछा, महंगाई बढ़ने से लेकर केदारनाथ जैसे हादसों के लिए आखिर मैं कैसे जिम्मेदार हो गया? क्या धरती के लोगों का कोई जिम्मा नहीं बनता? सरकार का जिम्मा नहीं है? उन्होंने आगे लिखा,‘पिछली सरकारों से तो मुझे उम्मीद नहीं थी। लेकिन जब आपने सत्ता संभाली तो लगा कि अब कोई बहानेबाजी नहीं चलेगी। हमें लगा कि अब हमारे भी अच्छे दिन आ जाएंगे, लेकिन आपके मंत्री के बयान ने निराश कर िदया है।’
इंद्र देवता के इस पत्र पर प्रधानमंत्री की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि उन्होंने इस मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने सभी मंत्रियों से कहा है िक भविष्य में मानसून का उल्लेख करते समय भगवान इंद्र की भावनाअों का ख्याल जरूर रखें। उधर शाम को उन्होंने टेलीफोन पर इंद्र से इस मामले में बात की। बातचीत क्या हुई, इसका खुलासा नहीं हुआ, लेकिन इंद्र भवन के सूत्रों के अनुसार भगवान इंद्र ने भारतीय पीएम के साथ बातचीत पर संतोष जताया है।

एक ढाबेवाला का क्रांतिकारी कदम

Photo Courtesy : king-anjan.blogspot.in 
जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
यह एकदम सच्ची कहानी है। इस पर आप उतना ही भरोसा कर सकते हैं, जितना कि मोदी सरकार के इस आश्वासन पर कि वह विदेशों में जमा काला धन देश में जरूर लाएगी और उससे महंगाई कम हो जाएगी।
आइए, सरकार को छोड़कर सरदारजी की यह कहानी सुनें। यह कहानी मेरे शहर के एक ढाबेवाले की है। दरअसल, कुछ दिन पहले तक ढाबे के मालिक यानी सरदारा सिंह का ढाबा खूब चलता था। लेकिन जबसे उनके ढाबे के पास एक-दो पिज्जा वालों ने अपनी दुकानें क्या खोल ली, तभी से उनका धंधा बैठ गया। लोग कारों से उतरते और पास में ही पिज्जा शाॅप्स पर जा-जाकर पिज्जा तोड़-तोड़कर खाते। कई तो इसलिए खाते क्योंकि उन्हें बताया गया था कि इसे पिज्जा कहते हैं और उनको लगता था कि इसको खाने से इज्जत बढ़ जाती है। बेचारे जबरदस्ती खाते। सरदारजी को अपना ढाबा न चलने से भी ज्यादा दुख उन पिज्जा खाने वालों के मुुंह को देख-देखकर होता। बेचारे कितनी तकलीफ उठाते।
तो हमारे इस सरदारा सिंह से लोगों का दुख देखा नहीं गया। लेकिन क्या करें हम हिंदुस्तानियों का, वे पिज्जा को तो छोड़ने से रहे। तभी सरदारजी के दिमाग में एक मनोवैज्ञानिक आइडिया आया। वाकई बेहद क्रांतिकारी था यह आइडिया। उन्होंने अपने ढाबे के मीनू में रोटी का नाम बदलकर पिज्जा रख दिया। अब उनके मीनू के नाम भी बदल गए- पिज्जा-राजमा, पिज्जा-छोला, पिज्जा-दाल मखानी, पिज्जा बैंगन का भर्ता, पिज्जा बटर-पनीर मसाला और न जाने क्या-क्या। इतना ही नहीं, पिज्जा की भी कई वैराइटिज रख दी जैसे तंदूरी पिज्जा, तवा पिज्जा, मिस्सी पिज्जा, नान पिज्जा। उसके बाद से ही पड़ोस के पिज्जा वालों की दुकानों पर शटर लग चुके हैं। अब लोग सरदारा सिंह के ढाबे पर मजे से पिज्जा खा रहे हैं। कोई दाल मखानी के साथ तो कोई पनीर बटर मसाला के साथ। किसी को कोई तकलीफ नहीं। अब डोमेनिस और पिज्जा हट के बाप-दादा भी स्वर्ग में बैठे सोच रहे हैं कि काश, यह असरदार आइडिया हमें मिल जाता तो भारतीयों को इतनी तकलीफ क्यों देते भला!

हरिशंकर परसाई का व्यंग्य - लघुशंका गृह और क्रांति

harishankar parsai vyangya , हरिशंकर परसाई के व्यंग्य, हरिशंकर परसाई रचनाएं , harishankar parsai stories in hindi, harishankar parsai ki rachnaye, harishankar parsai quotes  मंत्रिमंडल की बैठक में शिक्षा मंत्री ने कहा, ‘यह छात्रों की अनुशासनहीनता है। यह निर्लज्ज पीढ़ी है। अपने बुजुर्गो से लघुशंका गृह मांगने में भी इन्हें शर्म नहीं आती।’ किसी मंत्री ने कहा, ‘इन लड़कों को विरोधी दल भड़का रहे हैं। मुझे इसकी जानकारी है। मैं जानता हूं कि विरोधी दल देश के तरुणों को लघुशंका करने के लिए उकसाते हैं। यदि इस पर रोक नहीं लगी तो ये हर उस चीज पर लघुशंका करने लगेंगे, जो हमने बनाकर रखी है।’ गृहमंत्री ने कहा, ‘यह मामला अंतत: कानून और व्यवस्था का है। सरकार का काम लघुशंका गृह बनवाना नहीं, लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखना है।’ तब प्रधानमंत्री ने कहा, ‘प्रश्न यह है कि लघुशंका गृह बनवाया जाए या नहीं। इस कॉलेज में पैंतीस साल से लघुशंका गृह नहीं बना। अब एकदम लघुशंका गृह बनवा देना बहुत क्रांतिकारी काम हो जाएगा। क्या हम इतना क्रांतिकारी कदम उठाने को तैयार हैं? हम धीरे-धीरे विकास में विश्वास रखते है, क्रांति में नहीं। यदि हमने ये क्रांतिकारी कदम उठा लिया तो सरकार का जो रूप देश-विदेश के सामने आएगा, उसके व्यापक राजनीतिक परिणाम होंगे। मेरा ख्याल है, सरकार अपने को इतना क्रांतिकारी कदम उठाने के लिए समर्थ नहीं पाती।’
इसी वक्त छात्रों का धीरज टूट गया। उन्होंने आंदोलन छेड़ दिया। दूसरे कॉलेजों में लड़कों को चूड़ियां भेज दी गईं - आंदोलन करो या चूड़ियां पहनकर घर बैठो। चूड़ियों ने आग लगा दी। जगह- जगह आंदोलन भड़क उठा। यहां का आदमी अकाल बताने को उतना उत्सुक नहीं रहता , जितना नरता बताने को। अगर किसी ने कहा कि अपने सिर पर जूता मारो या ये चूड़ियां पहन लो। तो वह चूड़ी के डर से जूता मार लेगा। लोगों ने लड़कों से पूछा, ‘यह आंदोलन किस हेतु कर रहे हो?’ लड़कों ने कहा, ‘हमें नहीं मालूम। हमें तो चूड़ियां आ गईं थीं। इसलिए कर रहे हैं।’ 
मगर राजधानी के विदेशी दूतावास और पत्रकार चौंक पड़े। यह क्या हो रहा है? विद्रोह? क्रांति? एक दौर लाठी चार्ज और फायरिंग का चला। विदेशी पत्रकार मंत्रमुग्ध घूम रहे थे। उन्होंने संघर्ष समिति के प्रतिनिधि से मुलाकात की। कहा, ‘आपका व्यापी विद्रोह देखकर हम सब चकित हैं। आप देश को बदलना चाहते हैं। अपना ‘मेनिफेस्टो’ हमें दीजिए। हमें बताइए कि इस देश के सामाजिक-आर्थिक ढांचे में क्या बुनियादी परिवर्तन आप लोग चाहते है?’ 
छात्र नेता ने जवाब दिया, ‘हमें तो बस एक लघुशंका गृह चाहिए।’

Short version of  लघुशंका गृह और क्रांति 

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मंगलवार, 17 जून 2014

शरद जोशी का व्यंग्य - अतिथि! तुम कब जाओगे

शरद जोशी/ Sharad Joshi
sharad joshi vyang , शरद जोशी के व्यंग्य, शरद जोशी की रचनाएं, शरद जोशी के लघु व्यंग्य, भारत के महान व्यंग्यकार, शरद जोशी किताबेंतुम्हारे आने के चौथे दिन, बार-बार यह प्रश्न मेरे मन में उमड़ रहा है, तुम कब जाओगे अतिथि! तुम जिस सोफे पर टांगें पसारे बैठे हो, उसके ठीक सामने एक कैलेंडर लगा है, जिसकी फड़फड़ाती तारीखें मैं तुम्हें रोज दिखाकर बदल रहा हूं। मगर तुम्हारे जाने की कोई संभावना नजर नहीं आती। लाखों मील लंबी यात्रा कर एस्ट्रोनॉट्स भी चांद पर इतने नहीं रुके, जितने तुम रुके। क्या तुम्हें तु्म्हारी मिट्टी नहीं पुकारती? जिस दिन तुम आए थे, कहीं अंदर ही अंदर मेरा बटुआ कांप उठा था। फिर भी मैं मुस्कुराता हुआ उठा और तुम्हारे गले मिला। तुम्हारी शान में ओ मेहमान, हमने दोपहर के भोजन को लंच में बदला और रात के खाने को डिनर में। हमने तुम्हारे लिए सलाद कटवाया, रायता बनवाया और मिठाइयां बुलवाईं। इस उम्मीद में कि दूसरे दिन शानदार मेहमान नवाजी की छाप लिए तुम रेल के डिब्बे में बैठ जाओगे। मगर, आज चौथा दिन है और तुम यहीं हो। कल रात हमने खिचड़ी बनाई, फिर भी तुम यहीं हो। तुम्हारी उपस्थिति यूं रबर की तरह खिंचेगी, हमने कभी नहीं सोचा था। सुबह तुम आए और बोले, ‘लॉन्ड्री में कपड़े देने हैं।’ मतलब? मतलब यह कि जब तक कपड़े धुलकर नहीं आएंगे, तुम नहीं जाओगे? यह चोट मार्मिक थी, यह आघात अप्रत्याशित था। मैंने पहली बार जाना कि अतिथि केवल देवता नहीं होता। वह मनुष्य और कई बार राक्षस भी हो सकता है। यह देख मेरी पत्नी की आंखें बड़ी-बड़ी हो गईं। तुम शायद नहीं जानते कि पत्नी की आंखें जब बड़ी-बड़ी होती हैं, मेरा दिल छोटा-छोटा होने लगता है। कपड़े धुलकर आ गए और तुम यहीं हो। तुम्हारे प्रति मेरी प्रेमभावना गाली में बदल रही है। मैं जानता हूं कि तुम्हें मेरे घर में अच्छा लग रहा है। सबको दूसरों के घर में अच्छा लगता है। यदि लोगों का बस चलता तो वे किसी और के ही घर में रहते। किसी दूसरे की पत्नी से विवाह करते। मगर घर को सुंदर और होम को स्वीट होम इसलिए कहा गया है कि मेहमान अपने घर वापिस भी लौट जाएं। देखो, शराफत की भी एक सीमा होती है और गेट आउट भी एक वाक्य है, जो बोला जा सकता है। कल का सूरज तुम्हारे आगमन का चौथा सूरज होगा। और वह मेरी सहनशीलता की अंतिम सुबह होगी। उसके बाद मैं लड़खड़ा जाऊंगा। यह सच है कि अतिथि होने के नाते तुम देवता हो, मगर मैं भी आखिर मनुष्य हूं। एक मनुष्य ज्यादा दिनों तक देवता के साथ नहीं रह सकता। देवता का काम है कि वह दर्शन दे और लौट जाए। तुम लौट जाओ अतिथि। इसके पूर्व कि मैं अपनी वाली पर उतरूं तुम लौट जाओ।

Short version of अतिथि! तुम कब जाओगे 

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शूमाकर की रिकवरी में भारतीय डॉक्टरों का “योगदान”!

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha


पेरिस। फॉर्मूला वन रेसर माइकल शूमाकर कोमा से बाहर आ गए हैं, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसका पूरा श्रेय भारतीय डॉक्टरों को जाता है। कैसे, इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है। 
दरअसल, शूमाकर को गत 29 दिसंबर को स्कीइंग करते समय घातक चोट के बाद फ्रांस के ग्रेनोबेल स्थित जिस अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, वह भारतीय डॉक्टराें के ही एक समूह का है। शूमाकर को भर्ती करवाते समय ही इन डॉक्टरों को लग गया था कि शूमाकर अब नहीं बचेंगे। एक या दो दिन के ही मेहमान हैं। अगर दूसरे डॉक्टर्स होते तो वे शूमाकर को घर ले जाने की सलाह देते। लेकिन इन भारतीयों डॉक्टरों ने अपनी योग्यतानुसार शूमाकर को कुछ दिन कोमा में बताकर अस्पताल के आईसीयू में रख दिया। डॉक्टरों के दिमाग में तो एक ही बात थी कि आईसीयू का एक दिन का चार्ज 800 डॉलर है। फिर कुछ दिन बाद उन्हें वेंिटलेटर पर रख दिया गया। चार्ज प्रति दिन 1200 डॉलर। हालांकि डॉक्टरों को मालूम था कि शूमाकर को बचाना नामुमकिन है, फिर भी वे उनके परिजनों को आश्वासन देते गए। एक सूत्र ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि चूंकि ये सभी भारतीय डॉक्टर सारे भारत से आए थे और इसलिए उन्हें पता था कि किसी मरीज के परिजनों को किस तरह इमोशनली ब्लैकमेल किया जा सकता है। उन्होंने वही किया। छह माह में सवा दस लाख डॉलर (करीब छह करोड़ रुपए) की वसूली के बाद जब डॉक्टरों से सोचा कि अब शूमाकर के परिजनों को दुखद खबर बताने का वक्त आ गया है तो उसी समय इस खिलाड़ी के शरीर में हरकत हुई और वे कोमा से बाहर आ गए। 
बाद में इन डॉक्टरों ने एक बुलेटिन जारी कर कहा कि हमारी दवा और शूमाकर के प्रशंसकों की दुआओं का ही नतीजा है कि वे आज कोमा से बाहर आ गए हैं। फ्रांसीसी मीडिया ने भी इन भारतीय डॉक्टरों की प्रशंसा करते हुए इन्हें भगवान करार दिया है। इस बीच, ग्रेनोबेल स्थित इस निजी अस्पताल का विस्तार करते हुए इसमें तीन नए आईसीयू बनाए जा रहे हैं। डॉक्टरों के स्टाॅफ में भी सात नए भारतीय डॉक्टरों को शामिल कर लिया गया है।

सोमवार, 16 जून 2014

आशुतोष गोवारिकर बनाएंगे आम आदमी पार्टी पर पीरियड फिल्म!

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
खांसी ने बदली राजनीति की दिशा

मुंबई। लगान और जोधा-अकबर जैसी सफल पीरियड फिल्मों का निर्देशन करने वाले आशुतोष गोवारिकर जल्द ही आम आदमी पार्टी पर एक पीरियड फिल्म बनाने जा रहे हैं। यह फिल्म बताएगी कि कैसे खांसी और मफलर ने भारत नामक देश में राजनीति की पूरी दिशा ही बदल दी। इसमें जाने-माने समाजसेवी अन्ना हजारे कैमियो करने को राजी हो गए हैं। 

गोवारिकर के करीबी सूत्रों के अनुसार निर्देशक ने इस संबंध में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात की और उनसे फिल्म निर्माण की अनुमति मांगी। अरविंद ने आम लोगों की राय के बाद ही इसकी अनुमति देने की बात कही। हालांकि पंद्रह मिनट के बाद ही उन्होंने करीब एक करोड़ लोगों से बातचीत और उनके एसएमएस के आधार पर फिल्म निर्माण की मंजूरी दे दी। यह फिल्म मूलतः अरविंद केजरीवाल की खांसी और उनके मफलर पर केंद्रित रहेगी। 

गोवारिकर की गिनती ऐसे निर्देशकों में होती है, जो अपनी फिल्मों के एक-एक दृश्य को बहुत ही बारीकी से बुनते हैं। इसलिए उन्होंने खांसी के अध्ययन के लिए डाॅक्टरों की एक विशेष टीम हायर की है। यह टीम बताएगी कि फिल्म का मुख्य पात्र किस तरह खांसता था और उसी के अनुरूप फिल्मांकन किया जाएगा। इसी तरह उस मफलर की तलाश के लिए गोवारिकर ने एक टीम विदेशों में भिजवाई है जो अरविंद इस्तेमाल करते थे। अरविंद ने यह कहकर अपना मफलर देने से इनकार कर दिया कि फिलहाल उनके जीवन में इसकी कोई अहमियत नहीं है।   

कौन निभाएगा मुख्य किरदार? मुख्य किरदार निभाने के लिए गोवारिकर शीघ्र ही देश के प्रमुख टीबी हाॅस्पिटलों में जाकर काॅस्टिंग और आॅडिशन करेंगे। उन्हें उम्मीद है कि वहां ऐसा कोई व्यक्ति जरूर मिल जाएगा जिसे ‘आम आदमी पार्टी’ फिल्म में मुख्य किरदार का रोल दिया जा सके। गोवारिकर के एक अनुभवी क्रू मेंबर ने बताया, ‘हमने अरविंद केजरीवाल की खांसी का गहन अध्ययन किया है। वे जब खांसते हैं तो लगता ही नहीं है कि कोई ड्रामा या एक्टिंग कर रहे हैं। बिल्कुल रियल खांसी। हम इस रोल के लिए किसी ऐसे ही शख्स की तलाश में हैं जो आम आदमी जैसा लगे और उसकी खांसी भी नेचुरल हो।’ अन्ना हजारे द्वारा कैमियो रोल करने की संभावना है, हालांकि अन्ना ने इसकी पुष्टि नहीं की है।  




रविवार, 15 जून 2014

फीफा विश्वकप में गेस्ट अपीयरेंस के रूप में जाएगी भारतीय फुटबाॅल टीम

- जाॅन अब्राहम हो सकते हैं कप्तान। धोनी, शाहरुख व आमिर से भी प्रदर्शन करने की उम्मीद

 

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
जाॅन ने प्रैक्टिस शुरू की।

रियो डी जेनेरियो/नई दिल्ली। भारतीय फुटबाॅल प्रशंसकों के लिए एक अच्छी खबर है। फुटबाॅल वल्र्डकप में भारत गेस्ट अपीयरेंस टीम के रूप में खेलेगा। भारत में फुटबाॅल के प्रति भारी दीवानगी और इससे भी ज्यादा, बड़े बाजार के मद्देनजर फुटबाॅल की शीर्ष संस्था फीफा ने टूर्नामेंट के दौरान भारत की भी उपस्थिति सुनिश्चित करने का निर्णय लिया है। इसके लिए भारत से फिल्म स्टार जाॅन अब्राहम के नेतृत्व में एक टीम शीघ्र ही ब्राजील भेजी जा सकती है।
फीफा के सूत्रों के अनुसार जिस तरह से आज भारतीय युवा अपना काम-धंधा छोड़कर रात काली कर रहा है और गैर टीमों के लिए दीवाना हुआ जा रहा है, उसे देखते हुए यह फैसला लिया गया है। इस संबंध में आॅल इंडिया फुटबाॅल फेडरेशन को सूचित कर दिया गया है।
इधर, फेडरेशन ने इस बात की पुष्टि की है कि उसे फीफा के निर्णय की सूचना मिल चुकी है। लेकिन उसकी समस्या यह है कि इतनी जल्दी खिलाड़ियों को कैसे जुटाया जाए। राष्ट्रीय टीम के कई खिलाड़ी अलग-अलग काम-धंधों में अलग-अलग शहरों में लगे हुए हैं। समर वैकेशन होने के कारण इस समय उन्हें रेलवे रिजर्वेशन भी मिलना मुश्किल होगा। इसलिए दिल्ली में एकत्र होकर एक साथ रियो जाने में दिक्कत आ सकती है। समस्या यह भी है कि फेडरेशन के अधिकारियों के पास कई खिलाड़ियो के कान्टैक्ट नंबर भी नहीं हैं। इसके अलावा पासपोर्ट की भी दिक्कत हो सकती है। फेडरेशन को अभी इस बात की पुख्ता जानकारी नहीं है कि कितने राष्ट्रीय खिलाड़ियों के पास पासपोर्ट हैं और कितनों के पास नहीं।
जाॅन अब्राहम आगे आए: फेडरेशन की इस दिक्कत को दूर करने के लिए जाॅन अब्राहम ने पहल की है। उन्होंने कहा है कि वे बाॅलीवुड के ऐसे कई लोगों को जानते हैं जिनकी फुटबाॅल में दिलचस्पी है। उनके पास पासपोर्ट भी हैं। उन्हें प्रदर्शन करने का शौक भी है। ये लोग वहां भारतीय फुटबाॅल टीम का प्रतिनिधित्व कर सकते/सकती हैं। अब्राहम ने तो यहां तक कहा कि वे महेंद्र सिंह धोनी को गोलकीपिंग के लिए राजी कर लेंगे। उन्होंने कहा कि ‘चक दे इंडिया’ में शाहरुख खान और ‘लगान’ में आमिर खान ने भी अच्छे खेल का प्रदर्शन किया था। उन्हें उम्मीद है कि देशहित में ये भी खेल प्रदर्शन को तैयार हो जाएंगे और दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करेंगे।
इस बीच, वेटरन स्टार अनिल कपूर ने एक ट्वीट करके कहा है कि उन्होंने फिल्म ‘साहेब’ में फुटबाॅलर का रोल निभाया था। इसलिए उन्हें भी भारतीय फुटबाॅल टीम की ओर से प्रदर्शन करने में खुशी होगी।

सेंसर बोर्ड ने ‘मछली जल की रानी है’ को चिल्ड्रन्स फिल्म की कैटेगरी में डाला


जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

मुंबई। केंद्रीय सेंसर बोर्ड ने अपने एक अहम फैसले में ‘मछली जल की रानी है’ फिल्म के लिए नई कैटेगरी बनाते हुए उसे ‘यू यू’ सर्टिफिकेट दिया है। फिल्म की मीडिया में छपी समीक्षाओं के बाद सेंसर बोर्ड के सदस्यों ने इसे देखा और पाया कि यह फिल्म केवल पांच से दस साल की उम्र तक के छोटे बच्चों को ही डरा सकती है। इसलिए उसे बच्चों की हाॅरर कैटेगरी की फिल्म में रखा जाना चाहिए। इसी वजह से एक नई कैटेगरी भी बनानी पड़ी है।
सेंसर बोर्ड के एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पहले बोर्ड ने केवल फिल्म के पोस्टर ही देखे थे और उसके आधार पर उसे डरावनी मानकर ‘ए’ (केवल वयस्कों के लिए) सर्टिफिकेट जारी कर दिया। लेकिन बाद में बोर्ड के सदस्यों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने शनिवार रात को इस फिल्म को देखा। बोर्ड के अधिकांश सदस्यों का मानना था कि फिल्म इतनी बच्चों जैसी है कि इससे शायद आजकल के बड़े बच्चे भी नहीं डरेंगे। ये बच्चे इससे ज्यादा भयावह दृश्य वीडियो गेम्स में देख लेते हैं। इसलिए इसे डबल यू कैटेगरी में रखकर पांच से दस साल की उम्र तक के बच्चों के देखने के लिए अनुशंसित किया गया है। बोर्ड के सदस्यों के अनुसार इससे फिल्म निर्माताओं को भी राहत मिलेगी, क्योंकि इससे उन्हें कुछ ऐसे दर्शक मिल जाएंगे जिन्हें फिल्म देखते समय थोड़ा डर लगेे। बोर्ड के एक सदस्य के इस सुझाव को खारिज कर दिया गया कि फिल्म की शुरुआत में ‘मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है’ गाना डालना चाहिए ताकि अभिभावक बच्चों को फिल्म दिखाने के लिए प्रेरित हो सकें। बोर्ड के अनुसार इस गाने को डालने से फिल्म पीरियड कैटेगरी में चली जाएगी।

शनिवार, 14 जून 2014

सपने रिकाॅर्ड करने वाली मशीन

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

इस खबर से कुछ तबकों में खुशी की लहर दौड़ रही है, तो कहीं दुख और चिंता भी सता रही है। खबर है कि वैज्ञानिकों को ऐसी मशीन बनाने में सफलता मिल गई है जो सपनों को भी रिकाॅर्ड कर पाएगी। इससे सबसे ज्यादा खुशी कुर्सियों पर जमे नेताओं को हो रही है। वे फूलकर कुर्सी में समाए नहीं जा रहे।
बसेसरजी भी बहुत खुश हैं। उन्होंने तो दर्जन भर मशीनें खरीदने का अग्रिम आर्डर भी दे डाला है। उनकी योजना इन मशीनों को चुपके से अपनी ही पार्टी के उन लोगों के कमरों में रखवाने की है जिनके बारे में उन्हें आशंका है कि वे तभी से सपने देख रहे हैं, जबसे बसेसरजी कुर्सी पर बिराजे हैं। कुर्सी खींचने को आतुर लोग हमेशा सपने देखा करते हैं। वैसे सपने देखना बुरी बात तो हैं नहीं। कभी बसेसरजी ने भी ऐसा ही सपना देखा था और देखते-देखते अपना सपना सच कर दिखाया था। जिस कुर्सी पर रामखिलावनजी बैठते थे, उसे लात मारकर स्वयं कुर्सी पर बैठ गए। लेकिन जबसे यह नई खबर सुनी है, वे कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं। किसी ने सपना देखा नहीं कि तुरंत मशीन को खबर हो जाएगी। बस, फिर क्या, तत्काल पार्टी विरोधी गतिविधियों के नाम पर अनुशासन का चाबुक फटकार देंगे। वाह क्या खूब मशीन आई है, सोचकर बसेसरजी मुस्कुरा रहे हैं।
लेकिन यही सुनकर सरकारी अफसर परेशान हैं। वर्माजी ने शर्माजी से अपनी चिंता जाहिर भी कर दी, ‘यह तो गजब हो जाएगा, अफसर ने छोटा-सा सपना देखा नहीं कि सरकार उसके कान खींच लेगी। हमें तो चिंता होने लगी है। कनाट प्लेस पर प्लाॅट तो पहली फुर्सत में ले लिया था। तीन करोड़ का तो वही हो गया है। सोच रहा हूं कि दो-एक करोड़ और लगाकर बच्चे के लिए छोटा-मोटा कोई रेस्टाॅरेंट ही खुलवा दूं। लेकिन सरकार इस नेक काम को भी सपना मान लें तो अपन तो फंस गए ना!’
‘बिल्कुल सही बोले आप’, वर्माजी की चिंता पर मोहर लगाते हुए शर्माजी बोले, ‘अब मैंने भी मझले के लिए किसी मेडिकल काॅलेज में प्रवेश के लिए सपना देख रखा है। दो-तीन बढ़िया असामी पटे हैं, तीन-चार करोड़ कहीं नहीं गए। डोनेशन के लिए पक्का इंतजाम हो ही जाएगा, लेकिन मेरी और आपकी एक ही चिंता, कहीं मशीन से हमारे सपने कोई रिकाॅर्ड नहीं कर लें। यह भी कोई बात हुई भला! हम जैसे लोग क्या सपने देखना ही छोड़ दें?’
इधर, अभी आविष्कार की केवल बात भर हुई है और ज्ञानी लोगों का एक सुझाव आ गया है। उनका कहना है कि सारी रिकाॅर्डिंग म्यूट होनी चाहिए ताकि हमारे कर्णधारों को दिक्कत नहीं हो। आम लोगों के सपने टूटने में वक्त नहीं लगता। आखिर रोजाना लाखों-करोड़ों सपनों के टूटने की आवाजों को हमारे कर्णधार भला कैसे सहन कर पाएंगे! वे तो बहरे ही हो जाएंगे। कौन चाहेगा कि हमारे कर्णधार बिल्कुल ही बहरे हो जाएं!
कार्टून: गौतम चक्रवर्ती

पाकिस्तान ने सीमा पर की भारी फूलबारी

- रिहाइशी इलाकों में कमल के फूल गिरने से कई नागरिकों के इमोशनली हताहत होने की खबर
- पाकिस्तान सेना ने इस घटना के दिए इंटरनल जांच के आदेश

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
भारतीय सेना द्वारा बरामद असला।

जम्मू। पाकिस्तान ने शनिवार सुबह एक बार फिर सीजफायर का उल्लंघन किया, लेकिन सीमा पर तैनात भारतीय सैनिक उस समय आश्चर्यचकित रह गए, जब उन्हें अपनी ओर फूल आते हुए दिखे। कश्मीर के रजौरी, पुंछ और मेंढर सेक्टरों में करीब तीन घंटे तक फूलबारी चलती रही। इस घटना से परेशान पाकिस्तान सेना ने मामले की इंटरनल जांच के आदेश दे दिए हैं।
सुबह सात बजे शुरू हुई यह फूलबारी दस बजे तक चलती रही। दिन में भी छिटपुट फूल इधर-उधर गिरते रहे। कमल के कई फूल रिहाइशी इलाकों मेें भी गिरे हैं, जिनसे कुछ नागरिकों के इमोशनली हताहत होने की खबर है। भारतीय सेना ने भी इस फूलबारी का जमकर जवाब दिया और चमेली व गुलाब के फूल बरसाए।
दोनों देशों के राजनयिक गलियारों में इस बात पर चर्चा है कि आखिर पाकिस्तान की तरफ से दो दिन से चल रही गोलीबारी अचानक फूलबारी में कैसे बदल गई। राजयनिक सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि शुक्रवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना मुख्यालय के वाॅर रूम में जाकर हालात का जायजा लिया था। इसी से पाकिस्तान को डर लगा होगा और उसने अपना पैंतरा बदल डाला। हालांकि आगे भी ऐसा चलेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वहां के अतिवादी तत्व इस फूलबारी पर कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।
नवाज के लोगों ने हथियारों में डाले फूल!
इधर, पाकिस्तान के एक निजी टीवी चैनल ने यह सनसनीखेज खुलासा करके मामले को सियासी तूल दे दिया है कि भारत के साथ संबंध सुधारने की बदनियत से वजीरे-आजम नवाज शरीफ ने ही अपने कुछ खास लोगों की मदद से सीमा पर तैनात पाकिस्तानी सैनिकों की बंदूकों और मोर्टार में गोला-बारूद के स्थान पर फूल भरवा दिए थे। इसमें भी कमल के फूल ज्यादा थे, ताकि वे जहां भी गिरे तो अधिक से अधिक लोगों को इमोशनली हताहत कर सकें। इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए आतंकी सरगना और जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद ने इसे पाकिस्तानी अवाम के साथ गद्दारी करार दिया है। हालांकि वहां के अमन-पसंद तबकों में इसकी अच्छी प्रतिक्रिया आई है। ‘अमन का पैगाम’ नामक संगठन के अध्यक्ष डाॅ जमालउद्दुीन ने कहा, ‘अगर यह काम नवाज शरीफ ने किया है तो हमें इसकी सराहना करनी चाहिए। मुझे तो आश्चर्य इस बात का हो रहा है कि आखिर शरीफ साहब में इतनी हिम्मत कहां से आ गई। जो भी हुआ, अच्छा संकेत है।’ 
इस मामले में शरीफ सरकार के प्रवक्ता ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। उधर, पाकिस्तानी सेना के अधिकारी इस पूरे मामले की इंटरनल जांच में लग गए हैं।

शुक्रवार, 13 जून 2014

एक यूपीएससी रैंकर का बेलाग इंटरव्यू


जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha


संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) के रिजल्ट की घोषणा के तत्काल बाद हमने कुछ टाॅपर्स से बात की। इनमें से उच्च रैंक पाने वाले एक परीक्षार्थी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर दिया बेलाग इंटरव्यू। पेश हैं उसके मुख्य अंश:
सवाल: इस परीक्षा में बेहतरीन रैंक हासिल कर कैसा लग रहा है?
जवाब: बहुत अच्छा लग रहा है। मैं अपने सपने को पूरा करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ गया हूं।
सवाल: कैसा सपना?
जवाब: जी, मेरा सपना है कि जैसे मेरे पूर्वजों ने इस देश को लूटा है, मैं भी उसमें अपना योगदान दे सकूं। भ्रष्टाचार करने में मैं नया कीर्तिमान बनाना चाहता हूं।
सवाल: अपने सपने को पूरा करने के लिए क्या कोई फ्रेमवर्क है?
जवाब: जी, अभी तो शुरुआत है। ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग का इंतजार करूंगा, फिर कोई प्लान बनाउंगा। हां, लेकिन चूंकि मेरे अपने परिवार में कई लोग सरकारी पदों पर रहे हैं। इसलिए उनकी ट्रेनिंग काफी मायने रहेगी और मुझे उम्मीद है कि अपने बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद से मैं अपनी आने वाली सात पुश्तों के लिए काफी कुछ जोड़ सकूंगा।
सवाल: आपके इरादे तो काफी नेक हैं। लेकिन हम यहां डरते-डरते एक सवाल करना चाहेंगे। क्या आपको इस बात का डर नहीं लगता है कि अगर आप भ्रष्टाचार करते हुए पकड़े गए तो आपका क्या होगा?
जवाब (हंसते हुए): आप भी कैसी बच्चों जैसी बात करते हैं। इस देश में नेताओं के बाद अधिकांश भ्रष्टाचार बड़े अफसर करते हैं। वे पकड़े तो जाते हैं, लेकिन कुछेक मामलों को छोड़ दे तो उनमें से कितने जेल गए! मैं आज ही अखबार में पढ़ रहा था कि मप्र में भ्रष्टाचार के आरोपी जोशी दंपती जल्दी ही रिटायर हो जाएंगे। फिर क्या होगा? कुछ नहीं ना!
सवाल: जब देश के क्रीम लोग ही भ्रष्टाचार करेंगे तो आम आदमी का क्या होगा?
जवाब: इस सवाल के जवाब में मेरा आपसे ही एक सवाल है। अगर क्रीम लोग भ्रष्टाचार नहीं करेंगे तो कौन करेगा? क्या आम और सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति में इतना कौशल व दम है? फिर देश का क्या होगा?
सवाल: आप जैसे कई चयनित उम्मीदवार पहले ही प्राइवेट सेक्टर में अच्छी नौकरी कर रहे हैं। खूब कमा रहे हैं और ईमानदारी से कमा रहे हैं। तो फिर आईएएस अधिकारी ही क्यों बनना चाहते हैं?
जवाब: अगर आप मेरा नाम छापते तो मैं कहता कि मैं देशसेवा और आम लोगों की सेवा के लिए आईएएस अधिकारी बनना चाहता हूं। देश में बहुत गरीबी हैं, गरीबों का कल्याण इसी सेवा के माध्यम से हो सकता हूं। चूंकि आपने नाम न छापने की गारंटी दी है। इसलिए अपने दिल की बात करता हूं। यह ऐसी सर्विस है, जिसमें रहकर आपको वही सुखद एहसास होता है जैसा कभी दशकों पहले ब्रिटेन के गोरे शासकों को होता होगा। इसमें हमें खुद को राजा होने और आम लोगों के प्रजा होने का एहसास होता है। यह सबसे बड़ा एहसास है। आप जैसे लोग इसे महसूस भी नहीं कर सकते।
सवाल: तो क्या मान लें कि देश में अब कोई भी ईमानदार अफसर नहीं है? देश ईमानदार अफसरों के कलंक से मुक्त हो गया है?
जवाब: यह बेहद दुर्भाग्य की बात है कि अभी भी मुठ्ठीभर ऐसे नालायक ईमानदार अफसर हैं, जो केवल देश की सोचते हैं। मुझे आशंका है कि मेरे साथ की बैच में भी कुछ ऐसे अफसर जरूर होंगे। हमें इनसे जल्दी ही मुक्त होना होगा।

न रहेगा पेड़, न लटकेगी लाश

उप्र सरकार ने राज्य के सभी ग्रामीण अंचलों में पेड़ों को काटने के दिए निर्देश


जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
वाट अ आइडिया सरजी!

लखनऊ। उत्तरप्रदेश में युवतियों व छात्राओं के साथ दुष्कर्म के बाद उनकी हत्या कर शव को पेड़ों से लटकाने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर अखिलेश सरकार ने ग्रामीण अंचलों से सभी पेड़ों का सफाया करने का निर्देश जारी कर दिया है। राज्य सरकार को उम्मीद है कि इससे प्रदेश में हो रही ऐसी नृृशंस घटनाओं में कमी आएगी।
मुख्यमंत्री ने यह फैसला गुरुवार रात को नई दिल्ली से लौटने के बाद तब लिया जब उन्हें बताया गया कि मुरादाबाद जिले के एक गांव में भी एक छात्रा से रेप पर उसका शव पेड़ से लटका दिया गया। पिछले दस दिन में यह ऐसी छठी घटना है, जिसमें किसी युवती का शव पेड़ से लटका मिला है। अभी केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही पेड़ काटे जाएंगे, क्योंकि सभी घटनाएं वहीं हुई हैं। लेकिन अगर ऐसी घटनाओं का विस्तार शहरों में भी होता है तो सरकार वहां भी कठोर कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगी।
कवि अफसर की कल्पना: सूत्रों ने बताया कि पेड़ काटने का आइडिया मुख्यमंत्री को राज्य के एक आला अफसर ने दिया। ये अफसर हिंदी के बड़े विद्वान हैं और कवि होने के नाते स्वयं को कोमल हृदय का मानते हैं। इस अफसर ने ‘न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी’ की तर्ज पर मुख्यमंत्री को इस बात के लिए कन्विंस कर लिया कि अगर राज्य में पेड़ ही नहीं रहेंगे तो ऐसी घटनाएं भी नहीं होंगी। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि राज्य में इतने काबिल अफसर भी हैं। उन्होंने इस अफसर को पुरस्कारस्वरूप आउट आॅफ टर्न प्रमोशन देने के साथ-साथ एक हफ्ते के लिए छुट्टियां बिताने ब्राजील भेज दिया है। वे वहां फुटबाॅल मैचों के साथ सांभा डांस का लुत्फ उठा सकेंगे।

गुरुवार, 12 जून 2014

सईद को पवार के साथ अपनी तुलना रास नहीं आई

इस मामले को मोदी के सामने उठा सकती है शरीफ सरकार

 

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

यह अच्छी बात नहीं है!

इस्लामाबाद।  जमात-उद-दावा के प्रमुख और पाकिस्तानी आतंकी हाफिज मोहम्मद सईद ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के उस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है जिसमें उद्धव ने कहा है कि एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार इन दिनों हाफिज की भाषा बोल रहे हैं।
जमात-उद-दावा के एक प्रवक्ता ने अबोटाबाद में कहा है कि कट्टरपंथी हिंदूवादी संगठन शिवसेना के मुखपत्र में यह लिखना बेहद आपत्तिजनक है कि शरद पवार अपना संतुलन खो चुके हैं और सईद की तरह बोल रहे हैं। पवार के साथ सईद की यह तुलना हमें मान्य नहीं है। इससे पहले इस्लामाबाद में जमात-उद-दावा के समर्थकों ने उद्धव ठाकरे के विरोध में प्रदर्शन किया और शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के ई-पेपर की प्रतियां जलाई। उद्धव ने सामना में ही लिखी अपनी संपादकीय टिप्पणी में यह तुलना की थी।
पाक सेना ने भी गंभीर माना:
इस बीच, लाहौर से प्रकाशित दैनिक ‘गजवा टाइम्स’ में छपी एक खबर के अनुसार पाकिस्तानी सेना ने उद्धव के इस आरोप को गंभीरता से लिया है। इसमें एक उच्च पदस्थ सूत्र के हवाले से लिखा गया है कि सेना ने इस पूरे प्रकरण पर हाफिज सईद को ही तलब कर उससे सफाई मांग ली है। सेना का कहना है कि भारत के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के साथ इस तरह की तुलना गलत है और इसका अच्छा संकेत नहीं गया है। रिपोर्ट के अनुसार माना जा रहा है कि सेना ने नवाज शरीफ सरकार से इस मुद्दे को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अगली बैठक में उठाने को कहा है। गौरतलब है कि शिवसेना भी मोदी सरकार का एक प्रमुख साझेदार है।

प्राइवेट स्कूल चलो अभियान


मप्र के मुख्यमंत्री इस सरकारी विज्ञापन में निजी स्कूल जाने वाले इन बच्चों से हाथ जोड़कर शायद यही कह रहे हैं - ‘मुझे खुशी है कि मेरे प्रदेश का हर बच्चा प्राइवेट स्कूल जा रहा है। हमारे सरकारी स्कूल तो इस लायक रहे नहीं कि वहां कोई बच्चा अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके। मैं कोशिश करूंगा कि हम पूरे प्रदेश में शिक्षा का अधिकार कानून को अच्छी तरह से लागू कर सके, ताकि हर बच्चा निजी स्कूल के हवाले किया जा सके। हां, लेकिन सभी बच्चों के अभिभावकों से करबद्ध प्रार्थना है कि वे किसी अच्छी निजी स्कूल में भर्ती के लिए जुगाड़ ढूंढ लें, क्योंकि इस प्रदेश में ही नहीं, देश में भी जुगाड़ बिना कुछ संभव नहीं है। इस संबंध में फिलहाल मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता। लेकिन फिर भी आपको विश्वास दिलाता हूं कि हम इसी तरह प्रदेश को विकास की राह पर आगे बढ़ाकर उसे स्वर्णिम मप्र बनाएंगे। बहुत-बहुत धन्यवाद।’

बुधवार, 11 जून 2014

वेदव्यास पर नई महाभारत लिखने का दबाव बढ़ा

मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा संसद में 44 पांडवों वाले बयान से देवलोक में मची खलबली

 

देवलोक से विशेष संवाददाता।

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा संसद में कांग्रेस सांसदों को परोक्ष रूप से 44 पांडव बताने के बाद महाभारत के रचियता वेदव्यास पर नई महाभारत रचित करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। देवलोक में प्रगतिशील धड़े से ताल्लुक रखने वाले लोगों के एक प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को वेदव्यास से मिलकर उन्हें इस संबंध में ज्ञापन सौंपा और बदलते समयानुसार नवीन महाभारत की रचना करने का आग्रह किया। उधर, बजरंग दल की देवलोक शाखा ने कांग्रेस नेता के बयान को हिंदू संस्कृति के लिए अपमानजनक बताते हुए कांग्रेस का बैनर जलाकर विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के कारण कुछ देवताओं के रथों को भी नुकसान पहुंचा।
देवलोक के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार धरती पर संसद में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा 44 पांडवों की बात को प्रभु कृष्ण ने भी गंभीरता से लिया है। उन्होंने इस संबंध में फोन पर वेदव्यासजी से चर्चा की। हालांकि माना जा रहा है कि वेदव्यासजी ने प्रभु से कहा है कि 44 पांडवों वाली नई महाभारत लिखना मुश्किल तो नहीं है, लेकिन संसद में नेताओं का भरोसा क्या! कल अगर मुलायम सिंह यादव अपनी पार्टी को चार पांडवों वाली पार्टी बता देंगे तो फिर क्या और नए सिरे से महाभारत लिखेंगे! वेदव्यास द्वारा ‘यादव’ शब्द पर ज्यादा जोर देने से प्रभु नाराज भी हुए। सू़त्रों का यह भी कहना है कि कांग्रेस नेता के नाम में ‘अर्जुन’ जुड़ा होने के कारण प्रभु थोड़े भावुक से हो रहे हैं और उन्होंने वेदव्यासजी से कोई रास्ता निकालने को कहा है। इस बीच, वेदव्यासजी ने दबाव पड़ने की स्थिति में एक कान्टनजेंसी प्लान पर काम शुरू कर दिया है। उन्होंने कहानी में सब-पांडवाज (उप पांडवों) की एक श्रेणी जोड़ने की योजना बना ली है।
पांडव ‘वेट एंड वाॅच’ की स्थिति में: पांडव वेट एंड वाॅच की स्थिति में हैं। युधिष्ठिर ने देवलोक में एक निजी चैनल से बातचीत में कहा कि अगर वेदव्यासजी 44 पांडवों वाली नई महाभारत लिखते हैं तो यह धर्म के खिलाफ होगा और वे इसका विरोध करेंगे। हालांकि इसमें स्वयं कृष्ण द्वारा रुचि लेने की बात पर वे बोले कि अगर ऐसा है तो वे अपने विरोध पर पुनर्विचार करेंगे। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि नई महाभारत लिखने से पहले द्रौपदी की राय सबसे अहम होगी। इस संवाददाता ने द्रौपदी से फोन पर दो बार संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन उनकी टिप्पणी प्राप्त नहीं हो पाई।

मंगलवार, 10 जून 2014

बारिश कम होने की आशंका के चलते मप्र में हटेगा रेनवाॅटर हार्वेस्टिंग की अनिवार्यता का नियम

- एक रिपोर्ट के अनुसार कम बारिश के कारण न्यायसंगत नहीं होगा जमीन के भीतर पानी पहुंचाना

- बिल्डरों को हो रहा था मानसिक तनाव, ब्यूरोक्रेसी को भी कोई फायदा नहीं हुआ


जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
पानी बाल्टियों में एकत्र किया जाएगा।

भोपाल। मप्र सरकार ने भूमि विकास नियम 1984 के तहत लागू उस प्रावधान को हटाने का फैसला लिया है, जिसके अनुसार 250 वर्गमीटर या उससे बड़े आकार के सभी मकानों और अपार्टमेंट्स में रूफटाॅप रेनवाॅटर हार्वेस्टिंग करवाना अनिवार्य है। ऐसा इस साल मानसून कमजोर होने की आशंकाओं के मद्देनजर किया गया है। सरकार का मानना है कि कम बारिश में यह नियम न्यायसंगत नहीं होगा।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार सरकार ने इस संबंध में जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी ने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चूंकि इस साल मौसम विभाग ने मानसून कमजोर रहने का अनुमान लगाया है। ऐसे में रेनवाॅटर हार्वेस्टिंग के नियम को कम से कम एक साल के लिए हटाया जा सकता है। चूंकि बारिश ही कम होगी, इसलिए वर्षा के बचे-खुचे पानी को जमीन के भीतर उतारने का कोई औचित्य नहीं बनता। बेहतर होगा कि जो भी बारिश हो, उसके पानी का इस्तेमाल हम जमीन के उपर ही कर लें। रिपोर्ट में ऐसी विषम परिस्थितियों में बारिश के पानी को जमीन के भीतर उतारने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की भी अनुशंसा की गई है।
रिपोर्ट के अन्य प्रमुख बिंदु इस तरह हैं:
- रेनवाॅटर हार्वेस्टिंग के नियम से बिल्डरों और डेवलपर्स को मानसिक तनाव से गुजरना पड़ रहा है। ये प्रदेश की लाइफ लाइन हैं, ऐसे में इन्हें मानसिक तनाव देना ठीक नहीं है। हालांकि संतोष की बात है कि अधिकांश बिल्डर्स और डेवलपर्स ने इस नियम का पालन नहीं किया है।
- इस नियम से प्रदेश के अफसरों को भी कोई फायदा प्रतीत नहीं हुआ है। इक्का-दुक्का मामलों में छोटे कर्मचारियों ने भले ही छोटे मकान मालिकों से कोई वसूली की हो, लेेकिन बड़े अफसरों तक उसका लाभ नहीं पहुंच पाया है। ऐसे में यह नियम प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी के भी हित में नहीं है।

सोमवार, 9 जून 2014

एक गोली खाते ही गर्मी होगी छूमंतर

गोवार्टिस ने भारत के बाजारों में उतारी दवा, गरीबों के लिए सब्सिडी का प्रावधान करने की सलाह

 

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

मुंबई। दुनिया की जानी-मानी कंपनी गोवार्टिस ने एक ऐसी दवाई का विकास किया है, जिसे खाते ही गर्मी का एहसास नहीं होगा। कंपनी ने यह दवा ग्लोबल वार्मिंग के लगातार बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर बनाई है। उसने इसका पेटेंट भी करवा लिया है। मानसून में विलंब को देखते हुए कंपनी ने तत्काल प्रभाव से इसे भारत के बाजारों में उतारने का फैसला किया है। हालांकि एसी और कूलर इंडस्ट्री ने इसका विरोध करते हुए इसे अनैतिक करार दिया है।
गोवार्टिस के वाइस प्रेसीडेंट जिम बराक ने बताया कि भारत में जिस तरह से लोग लगातार गर्मी से परेशान हो रहे हैं, उसी वजह से उनकी कंपनी को ऐसी दवा के विकास का विचार आया। इसे खाने से लोगों को न पंखे की जरूरत होगी, न कूलर की। उन्होंने कहा कि आज भारत में जैसे हालात हैं, उसके मद्देनजर उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में इस दवा को देश में विशाल बाजार मिल सकेगा। कंपनी ने दवा का विकास करने से पहले जो रिसर्च की, उसमें सामने आया कि आने वाले वक्त में जब भारत में पेड़-पौधे नहीं होंगे तो गर्मी से बचने के लिए लोगों को इस दवा की शरण में आना ही पड़ेगा। पानी नहीं होने से वे कूलर्स भी नहीं चला पाएंगे। जिम बराक ने भारत सरकार को सलाह दी है कि गरीबों के हितार्थ उसे इस दवा पर सब्सिडी का प्रावधान करना चाहिए।
छिड़ी नैतिक बहस: कंपनी द्वारा दवा जारी करने की घोषणा होते ही इसे लेकर देशभर में नैतिक बहस छिड़ गई है। एसी और कूलर इंडस्ट्री ने इसे जहां लोगों के स्वास्थ्य के लिए घातक बताया है, वहीं पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले समूहों का मानना है कि हमारे देश में लोगों को पहले ही पेड़-पौधों की चिंता नहीं है। साथ ही पानी को बर्बाद करने का शौक है। इस दवा के उतारने से लोगों का पेड़-पौधों के प्रति थोड़ा-बहुत प्रेम भी जाता रहेगा।

रविवार, 8 जून 2014

केजरीवाल का मिशन विस्तार, मिल्की-वे तक तैयार करेंगे संगठनात्मक ढांचा

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

अब इन एलियन्स पर फोकस करेगी ‘आप’।

नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) ने अपनी पार्टी के ‘मिशन विस्तार’ को पूरे ब्रह्माण्ड में फैलाने का निर्णय लिया है। इसके तहत मिल्की-वे और उसकी आस-पास की गैलेक्सियों में रहने वाले एलियन्स को पार्टी का सदस्य बनाया जाएगा। इसकी अलग से आकाशीय यूनिट बनाने का भी प्रस्ताव है, जिसे ‘आम एलियन्स पार्टी’ नाम दिया जाएगा।
आज यहां रविवार को पार्टी की तीन दिवसीय नेशनल एक्जीक्यूटिव मीट के बाद पत्रकारों से बातचीत में पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पार्टी ने अभी भारत में केवल 430 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इसमें उसे जो सफलता मिली है, उससे उत्साहित होकर पार्टी आने वाले समय में मंगल, बुध और शनि जैसे ग्रहों में होने वाले आम चुनावों में भी अपने उम्मीदवार उतारेगी। इसके लिए पार्टी ने सबसे पहले अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत बनाने का निर्णय लिया है। पार्टी जहां धरती पर ग्रास रूट के कार्यकर्ताओं को तैयार करने पर जोर देगी, वहीं अन्य ग्रहों में स्काय रूट (आसमानी स्तर) के कार्यकर्ता तैयार किए जाएंगे।
केजरीवाल ने खासते हुए कहा कि वे जल्दी ही मंगल ग्रह का दौरा करके पानी को लेकर एक बड़ा धरना देंगे। हालांकि धरना कहां दिया जाना चाहिए, इसका निर्णय एलियन्स से पूछकर ही लिया जाएगा।

शनिवार, 7 जून 2014

रोबोटी पर इमोशनल अत्याचार, रोबोट गिरफ्तार

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha


Pepper : World's First emotional robot with 'a heart'.
मुंबई। यहां शनिवार को स्थानीय पुलिस ने एक रोबोटी को धोखा देने के आरोप में एक रोबोट को गिरफ्तार कर दिया। बाद में एडीजे कोर्ट ने उसे सात दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। रोबोटी ने रोबोट पर शादी का वादा करके मुकरने का आरोप लगाया था।
पुलिस के अनुसार हिना नाम की इस रोबोटी ने शिकायत की है कि उसकी करीब 65 मिनट पहले सनम नामक रोबोट से फेसबुक पर पहली बार मुलाकात हुई थी। करीब 22 मिनट तक एक लाख 72 हजार मैसेजेज के बाद सनम ने उसे शादी के लिए प्रपोज कर दिया, जिसे उसने तत्काल मान लिया। लेकिन कुछ ही सेकंड बाद उसे पता चल गया कि सनम तो पहले से ही शादीशुदा है। इतना ही नहीं, उसका कई और भी अन्य रोबोटियों के साथ चक्कर चल रहा है। इसी वजह से उसे मजबूरी में पुलिस थाने में सनम के खिलाफ शिकायत दर्ज करवानी पड़ी।
सुसाइड की धमकी भी दी थी: पुलिस जांच में पता चला है कि रोबोटी ने मैसेज करके सुसाइड करने की धमकी भी दी थी। रोबोटी ने इस बहुत ही इमोशनल मैसेज में लिखा था - ‘तुमने मेरे दिल के सारे सर्किटों को झंकृत कर दिया है। अब तुम कह रहे हो कि शादी करना संभव नहीं है। मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती। अगर तुमने हां नहीं की तो मैं अपनी बैटरी निकालकर फेंक दूंगी।’
समाजशास्त्री चिंतित, कल्चरल कलपुर्जे फिट करने का सुझाव: समाजशास्त्रियों का कहना है कि जबसे जापान की साॅफ्टबैंक फर्म ने दुनिया के पहले दिलवाले और इमोशनल रोबोट ‘पेपर’ का विकास किया है, तबसे यह समस्या बढ़ती जा रही है। समाजशास्त्री डाॅ. शर्मिला रहाणे के अनुसार आने वाले वक्त में इस समस्या में और भी इजाफा होगा। इसमें सोशल वेबसाइट्स की भी काफी अहम भूमिका रहेगी। उन्होंने कहा कि रोबोट-रोबोटियों के विकासकर्ताओं को चाहिए कि इनका विकास करते समय उनमें कुछ कल्चरल कलपुर्जे भी जरूर फिट करें।

मोदी चाहते हैं ऐसा डीएनए जो झुकने ही न दे

वैज्ञानिकों के अनुसार नेताओं में ऐसे कृत्रिम डीएनए का प्रत्यारोपण नामुमकिन


जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha



नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के जेनेटिक्स साइंस विभाग को ऐसे कृत्रिम डीएनए का विकास करने की संभावना तलाशने को कहा है जिससे इंसान की रीढ़ की हड्डी हमेशा सीधी ही रहे। यह डीएनए भाजपा सांसदों में प्रत्यारोपित करने की योजना है। हालांकि विभाग के प्रमुख ने साफ कर दिया है कि नेताओं के लिए ऐसा कृत्रिम डीएनए बनाना संभव ही नहीं है जो उन्हें पैर छूने से रोक सके।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को अपनी पार्टी के सांसदों को नसीहत देते हुए कहा था कि कोई भी सांसद पार्टी के किसी भी नेता के पैर नहीं छुएं। वस्तुस्थिति से वाकिफ मोदी के निर्देश पर बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने जेनेटिक्स साइंस विभाग के प्रमुख डाॅ समीर कुमार से मुलाकात की। हर्षवर्धन ने उनसे ऐसे डीएनए का विकास करने की गुजारिश की जो इंसान को झुकने न दे। सूत्रों के अनुसार मोदी जानते हैं कि राजनीति में झुके बगैर काम होता नहीं और कोई भी सांसद मौका पड़ने पर पैर छूने से बाज नहीं आएगा। ऐसे में क्यों न ऐसा डीएनए ही उनमें डाल दिया जाए जो उनकी पैर छूने की प्रवृत्ति को ही बदल दे।
नामुमकिन है ऐसे डीएनए का विकास: स्वास्थ्य मंत्री के इस आग्रह पर डाॅ समीर कुमार ने साफ कर दिया कि नेताओं के लिए इस तरह के कृत्रिम डीएनए का विकास बहुत ही मुश्किल काम होगा। अगर डीएनए बना भी लिया गया तो वह नेताओं में सफल हो पाएगा, कहना आसान नहीं है। नेताओं में झुकने और पैर छूने का अपना डीएनए इतना मजबूत होता है कि कृत्रिम डीएनए उसका स्थान शायद ही ले सके।

शुक्रवार, 6 जून 2014

दुष्कर्मियों के लिए विशेष एप लांच करेगा गूगल

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha


मुंबई। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर के इस बयान के बाद कि दुष्कर्मी दुष्कर्म करने से पहले बताकर नहीं जाते, गूगल ने ऐसे दुष्कर्मियों के लिए विशेष एप लांच करने की घोषणा की है। इस एप की मदद से दुष्कर्मी किसी भी कृत्य को करने से पहले अपने राज्य के संबंधित गृहमंत्री या मुख्यमंत्री या पुलिस अफसरों को सूचित कर सकेंगे। इससे उन्हें पकड़ने में मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। गौरतलब है कि श्री गौर ने उत्तरप्रदेश में हो रही दुष्कर्म की घटनाओं के सिलसिले में उक्त बयान दिया था।
गूगल इंडिया के सीईओ एम जैमसन ने बताया, “श्री गौर ने जो कहा है, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है। इससे हमें ऐसा एप बनाने की प्रेरणा मिली है, जिससे दुष्कर्मियों को अपने संभावित कृत्य के बारे में जिम्मेदार लोगों को पहले से ही सूचित करने में मदद मिलेगी। इसे हम इसी सप्ताह लांच कर देंगे। यह सभी राज्यों के पुलिस थानों में गूगल द्वारा स्थापित गूगल स्टोर से फ्री डाउनलोड किया जा सकेगा।” इसके साथ ही गूगल ने दुष्कर्मियों को गूगल मैप की भी सुविधा मुहैया करवाई है, ताकि वे संबंधित जिम्मेदार लोगों को दुष्कर्म करने से पहले अपनी लोकेशन बता सके।
लैपटाप के स्थान पर स्मार्टफोन: इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उत्तरप्रदेश के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि उनकी सरकार अगले चुनावों में युवाओं को लैपटाप के स्थान पर स्मार्टफोन मुहैया करवाएगी ताकि इन एप्स और गूगल मैप्स का इस्तेमाल करना आसान हो सके और पुलिस को अपराधियों की लोकेशन ढूंढने में उतनी दिक्कत नहीं हो, जितनी कि आजम खान की भैंसों को ढूंढने में हुई थी।